सूरह अल-अलक [96]
﴾ 1 ﴿ अपने पालनहार के नाम से पढ़, जिसने पैदा किया।
﴾ 2 ﴿ जिस ने मनुष्य को रक्त को लोथड़े से पैदा किया।
﴾ 3 ﴿ पढ़, और तेरा पालनहार बड़ा दया वाला है।
﴾ 4 ﴿ जिस ने लेखनी के द्वारा ज्ञान सिखाया।
﴾ 5 ﴿ इन्सान को उसका ज्ञान दिया जिस को वह नहीं जानता था।[1]
1. (1-5) इन आयतों में प्रथम वह़्यी (प्रकाशना) का वर्णन है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से कुछ दूर “जबले नूर” (ज्योति पर्वत) की एक गुफा में जिस का नाम “ह़िरा” है जा कर एकांत में अल्लाह को याद किया करते थे। और वहीं कई दिन तक रह जाते थे। एक दिन आप इसी गुफा में थे कि अकस्मात आप पर प्रथम वह़्यी (प्रकाशना) ले कर फ़रिश्ता उतरा। और आप से कहाः “पढ़ो”। आप ने कहाः मैं पढ़ना नहीं जानता। इस पर फ़रिश्ते ने आप को अपने सीने से लगा कर दबाया। इसी प्रकार तीन बार किया और आप को पाँच आयतें सुनाईं। यह प्रथम प्रकाशना थी। अब आप मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह से मुह़म्मद रसूलुल्लाह हो कर डरते काँपते घर आये। इस समय आप की आयु 40 वर्ष थी। घर आ कर कहा कि मुझे चादर उढ़ा दो। जब कुछ शांत हुये तो अपनी पत्नी ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को पूरी बात सुनाई। उन्हों ने आप को सांत्वना दी और अपने चचा के पुत्र “वरक़ा बिन नौफ़ल” के पास ले गईं जो ईसाई विद्वान थे। उन्हों ने आप की बात सुन कर कहाः यह वही फ़रिश्ता है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। काश मैं तुम्हारी नबुव्वत (दूतत्व) के समय शक्तिशाली युवक होता और उस समय तक जीवित रहता जब तुम्हारी जाति तुम्हें मक्का से निकाल देगी! आप ने कहाः क्या लोग मुझे निकाल देंगे? वरक़ा ने कहाः कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो आप लाये हैं उस से शत्रुता न की गई हो। यदि मैं ने आप का वह समय पाया तो आप की भरपूर सहायता करूँगा। परन्तु कुछ ही समय गुज़रा था कि वरक़ा का देहाँत हो गया। और वह समय आया जब आप को 13 वर्ष बाद मक्का से निकाल दिया गया। और आप मदीना की ओर हिजरत (प्रस्थान) कर गये। (देखियेः इब्ने कसीर) आयत संख्या 1 से 5 तक निर्देश दिया गया है कि अपने पालनहार के नाम से उस के आदेश क़ुर्आन का अध्ययन करो जिस ने इन्सान को रक्त के लोथड़े से बनाया। तो जिस ने अपनी शक्ति और दक्षता से जीता जागता इन्सान बना दिया वह उसे पुनः जीवित कर देने की भी शक्ति रखता है। फिर ज्ञान अर्थात क़ुर्आन प्रदान किये जाने की शुभ सूचना दी गई है।
1. (1-5) इन आयतों में प्रथम वह़्यी (प्रकाशना) का वर्णन है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से कुछ दूर “जबले नूर” (ज्योति पर्वत) की एक गुफा में जिस का नाम “ह़िरा” है जा कर एकांत में अल्लाह को याद किया करते थे। और वहीं कई दिन तक रह जाते थे। एक दिन आप इसी गुफा में थे कि अकस्मात आप पर प्रथम वह़्यी (प्रकाशना) ले कर फ़रिश्ता उतरा। और आप से कहाः “पढ़ो”। आप ने कहाः मैं पढ़ना नहीं जानता। इस पर फ़रिश्ते ने आप को अपने सीने से लगा कर दबाया। इसी प्रकार तीन बार किया और आप को पाँच आयतें सुनाईं। यह प्रथम प्रकाशना थी। अब आप मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह से मुह़म्मद रसूलुल्लाह हो कर डरते काँपते घर आये। इस समय आप की आयु 40 वर्ष थी। घर आ कर कहा कि मुझे चादर उढ़ा दो। जब कुछ शांत हुये तो अपनी पत्नी ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को पूरी बात सुनाई। उन्हों ने आप को सांत्वना दी और अपने चचा के पुत्र “वरक़ा बिन नौफ़ल” के पास ले गईं जो ईसाई विद्वान थे। उन्हों ने आप की बात सुन कर कहाः यह वही फ़रिश्ता है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। काश मैं तुम्हारी नबुव्वत (दूतत्व) के समय शक्तिशाली युवक होता और उस समय तक जीवित रहता जब तुम्हारी जाति तुम्हें मक्का से निकाल देगी! आप ने कहाः क्या लोग मुझे निकाल देंगे? वरक़ा ने कहाः कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो आप लाये हैं उस से शत्रुता न की गई हो। यदि मैं ने आप का वह समय पाया तो आप की भरपूर सहायता करूँगा। परन्तु कुछ ही समय गुज़रा था कि वरक़ा का देहाँत हो गया। और वह समय आया जब आप को 13 वर्ष बाद मक्का से निकाल दिया गया। और आप मदीना की ओर हिजरत (प्रस्थान) कर गये। (देखियेः इब्ने कसीर) आयत संख्या 1 से 5 तक निर्देश दिया गया है कि अपने पालनहार के नाम से उस के आदेश क़ुर्आन का अध्ययन करो जिस ने इन्सान को रक्त के लोथड़े से बनाया। तो जिस ने अपनी शक्ति और दक्षता से जीता जागता इन्सान बना दिया वह उसे पुनः जीवित कर देने की भी शक्ति रखता है। फिर ज्ञान अर्थात क़ुर्आन प्रदान किये जाने की शुभ सूचना दी गई है।
﴾ 6 ﴿ वास्तव में, इन्सान सरकशी करता है।
﴾ 7 ﴿ इसलिए कि वह स्वयं को निश्चिन्त (धनवान) समझता है।
﴾ 8 ﴿ निःसंदेह, फिर तेरे पालनहार की ओर पलट कर जाना है।[1]
1. (6-8) इन आयतों में उन को धिक्कारा है जो धन के अभिमान में अल्लाह की अवज्ञा करते हैं और इस बात से निश्चिन्त हैं कि एक दिन उन्हें अपने कर्मों का जवाब देने के लिये अल्लाह के पास जाना भी है।
1. (6-8) इन आयतों में उन को धिक्कारा है जो धन के अभिमान में अल्लाह की अवज्ञा करते हैं और इस बात से निश्चिन्त हैं कि एक दिन उन्हें अपने कर्मों का जवाब देने के लिये अल्लाह के पास जाना भी है।
﴾ 9 ﴿ क्या तुमने उसे देखा जो रोकता है।
﴾ 10 ﴿ एक भक्त को, जब वह नमाज़ अदा करे।
﴾ 11 ﴿ भला देखो तो, यदि वह सीधे मार्ग पर हो।
﴾ 12 ﴿ या अल्लाह से डरने का आदेश देता हो?
﴾ 13 ﴿ और देखो तो, यदि उसने झुठलाया तथा मुँह फेरा हो?[1]
1. (9-13) इन आयतों में उन पर धिक्कार है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के विरोध पर तुल गये। और इस्लाम और मुसलमानों की राह में रुकावट डालते और नमाज़ से रोकते हैं।
1. (9-13) इन आयतों में उन पर धिक्कार है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के विरोध पर तुल गये। और इस्लाम और मुसलमानों की राह में रुकावट डालते और नमाज़ से रोकते हैं।
﴾ 14 ﴿ क्या वह नहीं जानता कि अल्लाह उसे देख रहा है?
﴾ 15 ﴿ निश्चय यदि वह नहीं रुकता, तो हम उसे माथे के बल घसेटेंगे।
﴾ 16 ﴿ झूठे और पापी माथे के बल।
﴾ 17 ﴿ तो वह अपनी सभा को बुला ले।
﴾ 18 ﴿ हम भी नरक के फ़रिश्तों को बुलायेंगे।[1]
1. (14-18) इन आयतों में सत्य के विरोधी को दुष्परिणाम की चेतावनी है।
1. (14-18) इन आयतों में सत्य के विरोधी को दुष्परिणाम की चेतावनी है।
﴾ 19 ﴿ (हे भक्त) कदापि उसकी बात न सुनो तथा सज्दा करो और मेरे समीप हो जाओ।[1]
1. (19) इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के माध्यम से साधारण मुसलमानों को निर्देश दिया गया है कि सहनशीलता के साथ किसी धमकी पर ध्यान न देते हुये नमाज़ अदा करते रहो ताकि इस के द्वारा तुम अल्लाह के समीप हो जाओ।
1. (19) इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के माध्यम से साधारण मुसलमानों को निर्देश दिया गया है कि सहनशीलता के साथ किसी धमकी पर ध्यान न देते हुये नमाज़ अदा करते रहो ताकि इस के द्वारा तुम अल्लाह के समीप हो जाओ।