सूरह अल-इख़लास [112]
सूरह इख्लास के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 4 आयतें हैं।
- इख्लास का अर्थ है अल्लाह की शुद्ध इबादत (वंदना) करना| इसी का दूसरा नाम तौहीद (अद्वैत) है, इस सूरह में तौहीद का वर्णन है, इसी लिये इस का यह नाम है। [1]
1. यह सूरह मक्की सूरतों में से है। यद्यपि इस के उतरने से संबंधित रिवायत से लगता है कि यह सूरह मदीने में उस समय उतरी जब मदीने के यहूदियों ने आप से प्रश्न किया कि बताइये कि वह पालनहार कैसा है जिस ने आप को भेजा है। या यह कि “नजरान” के ईसाईयों ने इसी प्रकार का प्रश्न किया कि वह कैसा है, और किस धातु का बना हुआ है। तो यह सूरह उतरी। परन्तु सब से पहले यह प्रश्न स्वयं मक्का वासियों ने ही किया था। इसलिये इसे मक्का में उतरने वाली आरम्भिक सूरतों में गणना किया जाता है। इस का नाम “सूरह इख्लास” है। इख्लास का अर्थ है: अल्लाह पर ऐसे ईमान लाना कि उस के अस्तित्व और गुणों में किसी की साझेदारी की कोई आभा (झलक) न पाई जाये। और इसी को तौहीदे खालिस (निर्मल ऐकेश्वरवाद) कहते हैं। जहाँ तक अल्लाह को मानने की बात है तो संसार ने सदा उस को माना है परन्तु वास्तव में इस मानने में ऐसा मिश्रण भी किया है कि मानना और न मानना दोनों बराबर हो कर रह गये हैं। तौहीद को उजागर करने के लिये अल्लाह ने बराबर नबी भेजे परन्तु इन्सान बार बार इस तथ्य को खोता रहा। आदरणीय इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने तौहीद (ऐकेश्वरवाद) के लिये प्रस्थान किया, और अपने परिवार को एक बंजर वादी में बसाया कि वह मात्र एक अल्लाह की पूजा करेंगे। परन्तु उन्हीं के वंशज ने उन के बनाये तौहीद के केन्द्र अल्लाह के घर काबा को एक देव स्थल में बदल दिया। तथा अपने बनाये हुये देवताओं का अधिकार माने बिना अल्लाह के अधिकार को स्वीकार करने के लिये तैयार न थे। यह स्थिति मात्र मक्का वासियों की न थी, ईसाई और यहूदी भी यद्यपि तौहीद के दावेदार थे फिर भी उन के यहाँ तीन पूज्यों: पिता, पुत्र और पविगात्मा के योग से तौहीद बनी थी। यहदियों के यहाँ भी अल्लाह का पुत्रः उजैर अवश्य था। कहीं पूज्य एक तो था परन्तु बहुत से देवी देवता भी उस के साथ पूज्य थे। (देखियेः उम्मुल किताब)
- इस की आयत 1, 2 में अल्लाह के सकारात्मक गुणों को और आयत 3,4 में नकारात्मक गुणों को बताया गया है ताकि धर्मों और जातियों में जिस राह से शिर्क आया है उसे रोका जा सके। हदीस में है कि अल्लाह ने कहा कि मनुष्य ने मुझे झुठला दिया। और यह उस के लिये योग्य नहीं था। ओर मझे गाली दी. और यह उस के लिये योग्य नहीं था। उस का मझे झुठलाना उस का यह कहना है कि अल्लाह ने जैसे मुझे प्रथम बार पैदा किया है दोबारा नहीं पैदा कर सकेगा। जब कि प्रथम बार पैदा करना मेरे लिये दोबारा पैदा करने से सरल नहीं था। और उस का मुझे गाली देना यह है कि उस ने कहा कि अल्लाह के संतान है। जब कि मैं अकेला निर्पेक्ष हूँ। न मेरी कोई संतान है और न मैं किसी की संतान हूँ। और न कोई मेरा समकक्ष है। (सहीह बुख़ारी- 4974)
- सहीह हदीस में है कि यह सूरह तिहाई कुरआन के बराबर है। (सहीह बुख़ारीः 5015, सहीह मुस्लिमः 811) एक दूसरी हदीस में है कि एक व्यक्ति ने कहा कि, हे अल्लाह के रसूल! मैं इस सूरह से प्रेम करता हूँ। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः तुम्हें इस का प्रेम स्वर्ग में प्रवेश करा देगा। (सहीह बुख़ारीः 774)
अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
﴾ 1 ﴿ (हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अकेला है।[1]
1. आयत संख्या 1 में ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है, उस का अस्तित्व एवं गुणों में कोई साझी नहीं है। यहाँ ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग यह बताने के लिये किया गया है कि वह अकेला है। वह वृक्ष के समान एक नहीं है जिस की अनेक शाखायें होती हैं। आयत संख्या 2 में ‘समद’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है अब्रण होना। अर्थात जिस में कोई छिद्र न हो जिस से कुछ निकले, या वह किसी से निकले। और आयत संख्या 3 इसी अर्थ की व्याख्या करती है कि न उस की कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
1. आयत संख्या 1 में ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है, उस का अस्तित्व एवं गुणों में कोई साझी नहीं है। यहाँ ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग यह बताने के लिये किया गया है कि वह अकेला है। वह वृक्ष के समान एक नहीं है जिस की अनेक शाखायें होती हैं। आयत संख्या 2 में ‘समद’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है अब्रण होना। अर्थात जिस में कोई छिद्र न हो जिस से कुछ निकले, या वह किसी से निकले। और आयत संख्या 3 इसी अर्थ की व्याख्या करती है कि न उस की कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
﴾ 3 ﴿ न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
﴾ 4 ﴿ और न उसके बराबर कोई है।[1]
1. इस आयत में यह बताया गया है कि उस की प्रतिमा तथा उस के बराबर और समतुल्य कोई नहीं है। उस के कर्म, गुण और अधिकार में कोई किसी रूप में बराबर नहीं। न उस की कोई जाति है न परिवार। इन आयतों में क़ुर्आन उन विषयों को जो जातियों के तौह़ीद से फिसलने का कारण बने उसे अनेक रूप में वर्णित करता है। और देवियों और देवताओं के विवाहों और उन के पुत्र और पौत्रों का जो विवरण देव मालाओं में मिलता है क़ुर्आन ने उसी का खण्डन किया है।
1. इस आयत में यह बताया गया है कि उस की प्रतिमा तथा उस के बराबर और समतुल्य कोई नहीं है। उस के कर्म, गुण और अधिकार में कोई किसी रूप में बराबर नहीं। न उस की कोई जाति है न परिवार। इन आयतों में क़ुर्आन उन विषयों को जो जातियों के तौह़ीद से फिसलने का कारण बने उसे अनेक रूप में वर्णित करता है। और देवियों और देवताओं के विवाहों और उन के पुत्र और पौत्रों का जो विवरण देव मालाओं में मिलता है क़ुर्आन ने उसी का खण्डन किया है।