सूरह र’आद [13]
सूरह रअद के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 43 आयतें हैं।
- «रअद» का अर्थः बादल की गरज है। इस सूरह की आयत नं. (13) में बताया गया है कि वह अल्लाह की प्रशंसा के साथ उस की पवित्रता का गान करती है। इसी से इस का नाम रअद रखा गया है।
- इस सूरह में यह बताया गया है कि इस पुस्तक (कुआन पाक) का अल्लाह की ओर से उतरना सच्च है तथा उन लक्षणों की ओर ध्यान दिलाया गया है जिन से परलोक का विश्वास होता है तथा विरोधियों को चेतावनी दी गई है।
- तौहीद (ऐकेश्वरवाद) के विषय तथा सत्य और असत्य के अलग अलग परिणाम को बताया गया है| और सत्य के अनुयायियों के गुण और परलोक में उन का परिणाम तथा विरोधियों के दुष्परिणाम को प्रस्तुत किया गया है।
- विरोधियों को चेतावनी दी गई, तथा ईमान वालों को शुभ सूचना सुनाई गई है।
- और अन्त में रिसालत (दूतत्व) के विरोधियों को सावधान करने साथ आज्ञाकारियों के अच्छे अन्त को प्रस्तुत किया गया है ताकि विरोधियों को अल्लाह से भय की प्रेरणा मिले।
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
﴾ 1 ﴿ अलिफ, लाम, मीम, रा। ये इस पुस्तक (क़ुर्आन) की आयतें हैं और (हे नबी!) जो आपपर, आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, सर्वथा सत्य है। परन्तु अधिक्तर लोग ईमान (विश्वास) नहीं रखते।
﴾ 2 ﴿ अल्लाह वही है, जिसने आकाशों को ऐसे सहारों के बिना ऊँचा किया है, जिन्हें तुम देख सको। फिर अर्श (सिंहासन) पर स्थिर हो गया तथा सूर्य और चाँद को नियमबध्द किया। सब एक निर्धारित अवधि के लिए चल रहे हैं। वही इस विश्व की व्यवस्था कर रहा है, वह निशानियों का विवरण (ब्योरा) दे रहा है, ताकि तुम अपने पालनहार से मिलने का विश्वास करो।
﴾ 3 ﴿ तथा वही है, जिसने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत तथा नहरें बनायीं और प्रत्येक फल के दो प्रकार बनाये। वह रात्रि से दिन को छुपा देता है। वास्तव में, इसमें बहुत सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
﴾ 4 ﴿ और धरती में आपस में मिले हुए कई खण्ड हैं और उद्यान (बाग़) हैं अंगूरों के तथा खेती और खजूर के वृक्ष हैं। कुछ एक्हरे और कुछ दोहरे, सब एक ही जल से सींचे जाते हैं और हम कुछ को स्वाद में कुछ से अधिक कर देते हैं, वास्तव में, इसमें बहुत सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सूझ-बूझ रखते हैं।
﴾ 5 ﴿ तथा यदि आप आश्चर्य करते हैं, तो आश्चर्य करने योग्य उनका ये[1] कथन है कि जब हम मिट्टी हो जायेंगे, तो क्या वास्तव में, हम नई उत्पत्ति में होंगे? उन्होंने ही अपने पालनहार के साथ कुफ़्र किया है तथा उन्हीं के गलों में तोक़ पड़े होंगे और वही नरक वाले हैं, जिसमें वे सदा रहेंगे।
1. क्योंकि कि वह जानते हैं कि बीज धरती में सड़ कर मिल जाता है, फिर उस से पौधा उगता है।
1. क्योंकि कि वह जानते हैं कि बीज धरती में सड़ कर मिल जाता है, फिर उस से पौधा उगता है।
﴾ 6 ﴿ और वे आपसे बुराई (यातना) की जल्दी मचा रहे हैं भलाई से पहले। जबकि इनसे पहले यातनाऐं आ चुकी हैं और वास्तव में, आपका पालनहार लोगों को उनके अत्याचार पर क्षमा करने वाला है तथा निश्चय आपका पालनहार कड़ी यातना देने वाला (भी) है।
﴾ 7 ﴿ तथा जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैं कि आपपर आपके पालनहार की ओर से कोई आयत (चमत्कार) क्यों नहीं उतारा[1] गया। आपकेवल सावधान करने वाले तथा प्रत्येक जाति को सीधी राह दिखाने वाले हैं।
1. जिस से स्पष्ट हो जाता कि आप अल्लाह के रसूल हैं।
1. जिस से स्पष्ट हो जाता कि आप अल्लाह के रसूल हैं।
﴾ 8 ﴿ अल्लाह ही जानता है, जो प्रत्येक स्त्री के गर्भ में है तथा गर्भाशय जो कम और अधिक[1] करते हैं, प्रत्येक चीज़ की उसके यहाँ एक निश्चित मात्रा है।
1. इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः ग़ैब (परोक्ष) की तालिकायें पाँच हैं। जिन को केवल अल्लाह ही जानता हैः कल की बात अल्लाह ही जानता है, और गर्भाशय जो कमी करते हैं उसे अल्लाह ही जानता है। वर्षा कब होगी उसे अल्लाह ही जानता है। और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा। और न अल्लाह के सिवा कोई यह जानता है कि प्रलय कब आयेगी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4697)
1. इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः ग़ैब (परोक्ष) की तालिकायें पाँच हैं। जिन को केवल अल्लाह ही जानता हैः कल की बात अल्लाह ही जानता है, और गर्भाशय जो कमी करते हैं उसे अल्लाह ही जानता है। वर्षा कब होगी उसे अल्लाह ही जानता है। और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा। और न अल्लाह के सिवा कोई यह जानता है कि प्रलय कब आयेगी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4697)
﴾ 9 ﴿ वह सब छुपे और खुले (प्रत्यक्ष) को जानने वाला, बड़ा महान् सर्वोच्च है।
﴾ 10 ﴿ (उसके लिए) बराबर है, तुममें से जो बात चुपके बोले और जो पुकार कर बोले तथा कोई रात के अंधेरे में छुपा हो या दिन के उजाले में चल रहा हो।
﴾ 11 ﴿ उस (अल्लाह) के रखवाले (फरिश्ते) हैं। उसके आगे तथा पीछे, जो अल्लाह के आदेश से, उसकी रक्षा कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह किसी जाति की दशा नहीं बदलता, जब तक वह स्वयं अपनी दशा न बदल ले तथा जब अल्लाह किसी जाति के साथ बुराई का निश्चय कर ले, तो उसे फेरा नहीं जा सकता और न उनका उस (अल्लाह) के सिवा कोई सहायक है।
﴾ 12 ﴿ वही है, जो विध्दुत को तुम्हें भय तथा आशा[1] बनाकर दिखाता है और भारी बादलों को पैदा करता है।
1. अर्थात वर्षा होने की आशा।
1. अर्थात वर्षा होने की आशा।
﴾ 13 ﴿ और कड़क, अल्लाह की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करती है और फ़रिश्ते उसके भय से काँपते हैं। वह बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है, गिरा देता है तथा वे अल्लाह के बारे में विवाद करते हैं, जबकि उसका उपाय बड़ा प्रबल है[1]।
1. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैला कर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उस के मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हैं न उन में सुनने की शक्ति है न और वह उन की सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।
1. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैला कर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उस के मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हैं न उन में सुनने की शक्ति है न और वह उन की सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।
﴾ 14 ﴿ उसी (अल्लाह) को पुकारना सत्य है और जो उसके सिवा दूसरों को पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थना कुछ नहीं सुनते। जैसे कोई अपनी दोनों हथेलियाँ जल की ओर फैलाया हुआ हो, ताकि उसके मुँह में पहुँच जाये, जबकि वह उसतक पहुँचने वाला नहीं और काफ़िरों की पुकार व्यर्थ (निष्फल) ही है।
﴾ 15 ﴿ और अल्लाह ही को सज्दा करता है, चाह या न चाह, वह जो आकाशों तथा धरती में है और उनकी प्रछाईयाँ[1] भी प्रातः और संध्या[2]।
1. अर्थात सब उस के स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 2. यहाँ सज्दा करना चाहिये।
1. अर्थात सब उस के स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 2. यहाँ सज्दा करना चाहिये।
﴾ 16 ﴿ उनसे पूछोः आकाशों तथा धरती का पालनहार कौन है? कह दोः अल्लाह है। कहो कि क्या तुमने अल्लाह के सिवा उन्हें सहायक बना लिया है, जो अपने लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखते और न किसी हानि का? उनसे कहोः क्या अन्धा और देखने वाला बराबर होता है या अन्धेरे और प्रकाश बराबर होते हैं[1]? अथवा उन्होंने अल्लाह का साझी बना लिया है ऐसों को, जिन्होंने अल्लाह के उत्पत्ति करने के समान उत्पत्ति की है, अतः उत्पत्ति का विषय उनपर उलझ गया है? आप कह दें कि अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ का उत्पत्ति करने वाला है[2] और वही अकेला प्रभुत्वशाली है।
1. अंधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अंधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जिस ने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुर्आन पाक की और भी कई आयतों में परस्तुत किया गया है।
1. अंधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अंधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जिस ने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुर्आन पाक की और भी कई आयतों में परस्तुत किया गया है।
﴾ 17 ﴿ उसने आकाश से जल बरसाया, जिससे वादियाँ (उपत्यकाएँ) अपनी समाई के अनुसार बह पड़ीं। फिर (जल की) धारा के ऊपर झाग आ गया और जिस चीज़ को वे आभूषण अथवा सामान बनाने के लिए अग्नि में तपाते हैं, उसमें भी ऐसा ही झाग होता है। इसी प्रकार, अल्लाह सत्य तथा असत्य का उदाहरण देता है, फिर जो झाग है, वह सूखकर ध्वस्त हो जाता है और जो चीज़ लोगों को लाभ पहुँचाती है, वह धरती में रह जाती है। इसी प्रकार, अल्लाह उदाहरण देता[1] है।
1. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्यी द्वारा जो सत्य उतारा गया है वह वर्षा के समान है। और जो उस से लाभ प्राप्त करते हैं वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं जो कुछ देर के लिये उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरता है, फिर मैल उड़ता है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है। और केवल सत्य रह जाता है।
1. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्यी द्वारा जो सत्य उतारा गया है वह वर्षा के समान है। और जो उस से लाभ प्राप्त करते हैं वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं जो कुछ देर के लिये उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरता है, फिर मैल उड़ता है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है। और केवल सत्य रह जाता है।
﴾ 18 ﴿ जिन लोगों ने अपने पालनहार की बात मान ली, उन्हीं के लिए भलाई है और जिन्होंने नहीं मानी, यदि जो कुछ धरती में है, सब उनका हो जाये और उसके साथ उसके समान और भी, तो वे उसे (अल्लाह के दण्ड से बचने के लिए) अर्थदण्ड के रूप में दे देंगे। उन्हीं से कड़ा ह़िसाब लिया जायेगा तथा उनका स्थान नरक है और वह बुरा रहने का स्थान है।
﴾ 19 ﴿ तो क्या, जो जानता है कि आपके पालनहार की ओर से, जो (क़ुर्आन) आपपर उतारा गया है, सत्य है, उसके समान है जो अन्धा है? वास्तव में, बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
﴾ 20 ﴿ जो अल्लाह से किया वचन[1] पूरा करते हैं और वचन भंग नहीं करते।
1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
﴾ 21 ﴿ और उन (संबंधों) को जोड़ते हैं, जिनके जोड़ने का अल्लाह ने आदेश दिया है और अपने पालनहार से डरते हैं तथा बुरे ह़िसाब से डरते हैं।
﴾ 22 ﴿ तथा जिन लोगों ने अपने पालनहार की प्रसन्नता के लिए धैर्य से काम लिया, नमाज़ की स्थापना की तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें छुपे और खुले तरीक़े से दान करते रहे, तो वही हैं, जिनके लिए परलोक का घर (स्वर्ग) है।
﴾ 23 ﴿ ऐसे स्थायी स्वर्ग, जिनमें वे और उनके बाप-दादा तथा उनकी पत्नियों और संतान में से जो सदाचारी हों, प्रवेश करेंगे तथा फ़रिश्ते उनके पास प्रत्येक द्वार से (स्वागत के लिए) प्रवेश करेंगे।
﴾ 24 ﴿ (वे कहेंगेः) तुमपर शान्ति हो, उस धैर्य के कारण, जो तुमने किया, तो क्या ही अच्छा है ये परलोक का घर!
﴾ 25 ﴿ और जो लोग अल्लाह से किये वचन को, उसे सुदृढ़ करने के पश्चात्, भंग कर देते हैं और अल्लाह ने जिस संबन्ध को जोड़ने का आदेश दिया[1] है, उसे तोड़ते हैं और धरती में उपद्रव फैलाते हैं। वही हैं, जिनके लिए धिक्कार है और जिनके लिए बुरा आवास है।
1. ह़दीस में आया है कि जो व्यक्ति यह चाहता हो कि उस की जीविका अधिक, और आयु लम्बी हो तो वह अपने संबन्धों को जोड़े। (सह़ीह़ बुख़ारीः2067, सह़ीह़ मुस्लिमः2557)
1. ह़दीस में आया है कि जो व्यक्ति यह चाहता हो कि उस की जीविका अधिक, और आयु लम्बी हो तो वह अपने संबन्धों को जोड़े। (सह़ीह़ बुख़ारीः2067, सह़ीह़ मुस्लिमः2557)
﴾ 26 ﴿ और अल्लाह जिसे चाहे, जीविका फैलाकर देता है और जिसे चाहे. नापकर देता है और वे (काफ़िर) सांसारिक जीवन में मगन हैं तथा सांसारिक जीवन परलोक की अपेच्छा तनिक लाभ के सामान के सिवा कुछ भी नहीं है।
﴾ 27 ﴿ और जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैः इसपर इसके पालनहार की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गयी? (हे नबी!) आप कह दें कि वास्तव में अल्लाह जिसे चाहे, कुपथ करता है और अपनी ओर उसी को राह दिखाता है, जो उसकी ओर ध्यानमग्न हों।
﴾ 28 ﴿ (अर्थात वे) लोग जो ईमान लाए तथा जिनके दिल अल्लाह के स्मरण से संतुष्ट होते हैं। सुन लो! अल्लाह के स्मरण ही से दिलों को संतोष होता है।
﴾ 29 ﴿ जो लोग ईमान लाये और सदाचार किये, उनके लिए आनन्द[1] और उत्तम ठिकाना है।
1. यहाँ “तूबा” शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस का शाब्दिक अर्थः सुख और सम्पन्नता है। कुछ भाष्यकारों ने इसे स्वर्ग का एक वृक्ष बताया है जिस का साया बड़ा आनन्नददायक होगा।
1. यहाँ “तूबा” शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस का शाब्दिक अर्थः सुख और सम्पन्नता है। कुछ भाष्यकारों ने इसे स्वर्ग का एक वृक्ष बताया है जिस का साया बड़ा आनन्नददायक होगा।
﴾ 30 ﴿ इसी प्रकार, हमने आपको एक समुदाय में जिससे पहले बहुत-से समुदाय गुज़र चुके हैं रसूल बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है और वे अत्यंत कृपाशील को अस्वीकार करते हैं? आप कह दें वही मेरा पालनहार है, कोई पूज्य नहीं परन्तु वही। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर मुझे जाना है।
﴾ 31 ﴿ यदि कोई ऐसा क़ुर्आन होता, जिससे पर्वत खिसका[1] दिये जाते या धरती खण्ड-खण्ड कर दी जाती या इसके द्वारा मुर्दों से बात की जाती (तो भी वे ईमान नहीं लाते)। बात ये है कि सब अधिकार अल्लाह ही को हैं, तो क्या जो ईमान लाये हैं, वे निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता, तो सब लोगों को सीधी राह पर कर देता! और काफ़िरों को उनके करतूत के कारण बराबर आपदा पहुँचती रहेगी अथवा उनके घर के समीप उतरती रेहगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वचन[2] आ जाये और अल्लाह, वचन का विरुध्द नहीं करता।
1. मक्का के काफ़िर आप से यह माँग करते थे कि यदि आप नबी हैं तो हमारे बाप दादा को जीवित कर दें। ताकि हम उन से बात करें। या मक्का के पर्वतों को खिसका दें। कुछ मुसलमानों के दिलों में भी यह इच्छा हुई कि ऐसा हो जाता है तो संभव है कि वह ईमान ले आयें। उसी पर यह आयत उतरी। (देखियेः फ़त्ह़ुल बयान, भाष्य सूरह रअद) 2. वचन से अभिप्राय प्रलय के आने का वचन है।
1. मक्का के काफ़िर आप से यह माँग करते थे कि यदि आप नबी हैं तो हमारे बाप दादा को जीवित कर दें। ताकि हम उन से बात करें। या मक्का के पर्वतों को खिसका दें। कुछ मुसलमानों के दिलों में भी यह इच्छा हुई कि ऐसा हो जाता है तो संभव है कि वह ईमान ले आयें। उसी पर यह आयत उतरी। (देखियेः फ़त्ह़ुल बयान, भाष्य सूरह रअद) 2. वचन से अभिप्राय प्रलय के आने का वचन है।
﴾ 32 ﴿ और आपसे पहले भी बहुत-से रसूलों का परिहास किया गया है, तो हमने काफ़िरों को अवसर दिया। फिर उन्हें धर लिया, तो मेरी यातना कैसी रही?
﴾ 33 ﴿ तो क्या जो प्रत्येक प्राणी के करतूत से अवगत है और उन्होंने उस (अल्लाह) का साझी बना लिया है, आप कहिए कि उनके नाम बताओ या तुम उसे उस चीज़ से सूचित कर रहे हो, जिसे वह धरती में नहीं जानता या ओछी बात[1] करते हो? बल्कि काफ़िरों के लिए उनके छल सुशोभित बना दिये गये हैं और सीधी राह से रोक दिये गये हैं और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं।
1. अर्थात निर्मूल और निराधार।
1. अर्थात निर्मूल और निराधार।
﴾ 34 ﴿ उन्हींके लिए यातना है सांसारिक जीवन में। और निःसंदेह परलोक की यातना अधिक कड़ी है और उन्हें अल्लाह से कोई बचाने वाला नहीं।
﴾ 35 ﴿ उस स्वर्ग का उदाहरण, जिसका वचन आज्ञाकारियों को दिया गया है, उसमें नहरें बहती हैं, उसके फल सतत हैं और उसकी छाया। ये उनका परिणाम है, जो अल्लाह से डरे और काफ़िरों का परिणाम नरक है।
﴾ 36 ﴿ (हे नबी!) जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे उस (क़ुर्आन) से प्रसन्न हो रहे हैं[1], जो आपकी ओर उतारा गया है और सम्प्रदायों में कुछ ऐसे भी हैं, जो नहीं मानते[2]। आप कह दें कि मुझे आदेश दिया गया है कि अल्लाह की ईबादत (वंदना) करूँ और उसका साझी न बनाऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे जाना है[3]।
1. अर्थात वह यहूदी, ईसाई और मुर्तिपूजक जो इस्लाम लाये। 2. अर्थात जो अब तक मुसलान नहीं हुये। 3. अर्थात कोई ईमान लाये या न लाये, मैं तो कदापि किसी को उस का साझी नहीं बना सकता।
1. अर्थात वह यहूदी, ईसाई और मुर्तिपूजक जो इस्लाम लाये। 2. अर्थात जो अब तक मुसलान नहीं हुये। 3. अर्थात कोई ईमान लाये या न लाये, मैं तो कदापि किसी को उस का साझी नहीं बना सकता।
﴾ 37 ﴿ और इसी प्रकार, हमने इसे अरबी आदेश के रूप में उतारा है[1] और यदि आप उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण करेंगे, इसके पश्चात् कि आपके पास ज्ञान आ गया, तो अल्लाह से आपका कोई सहायक और रक्षक न होगा।
1. ताकि वह बहाना न करें कि हम क़ुर्आन को समझ नहीं सके, इस लिये कि सारे नबियों पर जो पुस्तकें उतरीं वह उन्हीं की भाषाओं में थीं।
1. ताकि वह बहाना न करें कि हम क़ुर्आन को समझ नहीं सके, इस लिये कि सारे नबियों पर जो पुस्तकें उतरीं वह उन्हीं की भाषाओं में थीं।
﴾ 38 ﴿ और हमने आपसे पहले बहुत-से रसूलों को भेजा है और उनकी पत्नियाँ तथा बाल-बच्चे[1] बनाये। किसी रसूल के बस में नहीं है कि अल्लाह की अनुमति बिना कोई निशानी ले आये और हर वचन के लिए एक निर्धारित समय है[2]।
1. अर्थात वह मनुष्य थे, नूर या फ़रिश्ते नहीं। 2. अर्थात अल्लाह का वादा अपने समय पर पूरा हो कर रहेगा। उस में देर-सवेर नहीं होगी।
1. अर्थात वह मनुष्य थे, नूर या फ़रिश्ते नहीं। 2. अर्थात अल्लाह का वादा अपने समय पर पूरा हो कर रहेगा। उस में देर-सवेर नहीं होगी।
﴾ 39 ﴿ वह जो (आदेश) चाहे, मिटा देता है और जो चाहे, शेष (साबित) रखता है। उसी के पास मूल[1] पुस्तक है।
1. अर्थात “लौह़े मह़फ़ूज़” जिस में सब कुछ अंकित है।
1. अर्थात “लौह़े मह़फ़ूज़” जिस में सब कुछ अंकित है।
﴾ 40 ﴿ और (हे नबी!) यदि हम आपको उसमें से कुछ दिखा दें, जिसकी धमकी हमने उन (काफ़िरों) को दी है अथवा आपको (पहले ही) मौत दे दें, तो आपका काम उपदेश पहुँचा देना है और ह़िसाब लेना हमारा काम है।
﴾ 41 ﴿ क्या वे नहीं देखते कि हम धरती को, उसके किनारों से कम करते[1] जा रहे हैं और अल्लाह ही आदेश देता है, कोई उसके आदेश की प्रत्यालोचन करने वाला नहीं और वह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
1. अर्थात मुसलमानों की विजय द्वारा काफ़िरों के देश में कमी करते जा रहे हैं।
1. अर्थात मुसलमानों की विजय द्वारा काफ़िरों के देश में कमी करते जा रहे हैं।
﴾ 42 ﴿ तथा उससे पहले (भी) लोगों ने रसूलों के साथ षड्यंत्र रचा और षड्यंत्र (को निष्फल करने) का सब अधिकार तो अल्लाह को है, वह जो कुछ प्रत्येक प्राणी करता है, उसे जानता है और काफ़िरों को शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा कि परलोक का घर किसके लिए है?
﴾ 43 ﴿ (हे नबी!) जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैं कि आप अल्लाह के भेजे हुए नहीं हैं। आप कह दें: मेरे तथा तुम्हारे बीच अल्लाह तथा उनकी गवाही, जिन्हें किताब का ज्ञान दिया गया है, काफ़ी है[1]।
1. अर्थात उन अह्ले किताब (यहूदी और ईसाई) की जिन को अपनी पुस्तकों से नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की शुभ सूचना का ज्ञान हुआ तो वह इस्लाम ले आये। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम तथा नजाशी (ह़ब्शा देश का राजा), और तमीम दारी इत्यादि। और आप के रसूल होने की गवाही देते हैं।
1. अर्थात उन अह्ले किताब (यहूदी और ईसाई) की जिन को अपनी पुस्तकों से नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की शुभ सूचना का ज्ञान हुआ तो वह इस्लाम ले आये। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम तथा नजाशी (ह़ब्शा देश का राजा), और तमीम दारी इत्यादि। और आप के रसूल होने की गवाही देते हैं।